Wednesday, May 5, 2021

Nadi Class 6 By Shastri Dheeraj Pandey #Mesh Rashi,#मेष

 DDHEERAJ Pndey, [05.05.21 11:35]
🌹🌹 *ॐ*🌹🌹
*वक्रतुंड महाकाय कोटी सूर्य समप्रभा ।।*
*निर्विघ्नम कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।*
परिवार में उपस्थित सभी सदस्यों का स्वागत है।🌹🌹
DDHEERAJ Pndey, [05.05.21 11:35]
आज की क्लास शुरू करते है।आज हम सब राशियों के बारे में जानेंगे।

मेष

शास्त्री श्री धीरज पान्डेय जी
अधिपति  : मंगल।
शुभ  : सूर्य, मंगल, बृहस्पति।
अशुभ  : बुध, शुक्र, शनि।
सम  : कोई नहीं।
मारक  : शुक्र।
बाधक स्थान  : कुम्भ (11वां)।
बाधकपति  : शनि।
योगकारक  : बृहस्पति, शनि।
उच्चस्थ  : सूर्य 10°
नीचस्थ  : शनि 20°
मूलत्रिकोण  : मंगल (0°-12°)
आदर्श मिलान राशि  : सिंह, तुला, धनु।
चंद्रमा की शुभ डिग्री  : 21°
चंद्रमा की अशुभ डिग्री  : 8°, 26°
भाग्यशाली परफ्यूम/सुगंध  : ड्रैगन का खून।
भाग्यशाली रत्न  : तांबें में लाल मूंगा पहली उंगली में, माणिक, मोती, रक्तमणि।
भाग्यशाली रंग  : लाल, पीला, तांबे जैसा रंग, सुनहरा। काले रंग से बचें।
भाग्यशाली दिन  : मंगलवार, शुक्रवार, शनिवार।
भाग्यशाली संख्या  : 1, 2, 3, 4, 5, 8, 9.
व्रत का दिन  : मंगलवार।
नियंत्रण  : जीवन - शक्ति, उन्माद, मेनिनजाइटिस (मस्तिष्क की नाडि़यों की सूजन)

DDHEERAJ Pndey, [05.05.21 11:40]
विशेष लक्षण :
प्रज्वलित, सूखा, पूर्व, चर राशि, बंजर, पृष्ठोदय, पुरुष, सकारात्मक, चौपाया, रात से संबंधी, कम चढ़ावदार, उत्तरायण, पित्त दोष युक्त, वैशाख (15 अप्रैल- 15 मई), आधी रात को अंधा, चंद्र क्षेत्र, अशुभ/क्रूर, विषम, दिन की राशि, धातु, क्षत्रिय, हिंसक, वहशी/पाशविक, रहस्यमय, आवेगी व लयबद्ध राशि।

DDHEERAJ Pndey, [05.05.21 11:42]
रूप, रंग व आकार :
मध्यम कद, दुबला शरीर, चौड़ा माथा, ठुड्ढी पर पतला, लम्बा चेहरा व लम्बी गर्दन, सुव्यवस्थित दांत, गोल आँखें, घनी भौहें, कमजोर घुटने, भद्दे नाखून, विकसित मांसपेशी, तेज दृष्टि, सिर या ललाट पर मस्सा या निशान, सूर्ख रंगत, टहलने के शौकीन, संयम से व शीघ्रता से भोजन करने वाला।

DDHEERAJ Pndey, [05.05.21 11:44]
सकारात्मक लक्षण/गुण :
परिस्थितियों के अनुसार समायोजन करने की शक्ति, योजना बनाने की योग्यता, गतिशील व रचनात्मक, निडर, खरा, महात्वाकांक्षी, आत्मविश्वास, दूसरों के लिए जोखिम लेना, वास्तविक व स्वतंत्र, स्वतंत्रता प्रिय, साहसी, जीवनशक्ति, स्वीकारात्मक, प्रचूर उर्जापूर्ण, वीर, अग्रणी, प्रबल इच्छाशक्ति, कला, भव्यता व सुन्दरता के लिए प्रेम, उद्यमी, नेता, बलशाली।

DDHEERAJ Pndey, [05.05.21 11:45]
नकारात्मक लक्षण/गुण :
गर्म/उग्र प्रकृति, अधीर, तुनकमिजाजी, अशांत, आवेगी, असहिष्णु, स्वार्थी, अस्थिर मन, नाजुक, जलनशील, आक्रामक, जटिल व्यक्तित्व, निरंतर रूकने या काम करने के बाद परिवर्तन या आराम की आवश्यकता, किसी की दखलअंदाजी बर्दाश्त ना करना, आपके व्यवहार का दूसरे पर क्या प्रभाव पड़ेगा इससे बेपरवाह, चिड़चिड़ा, दुस्साहसी, उग्र स्वभाव, हठी।

DDHEERAJ Pndey, [05.05.21 11:46]
अधिशासित शारीरिक अंग :
सिर, मस्तिष्क, आँखें, ऊपरी जबड़ा, चेहरे की हड्डियां, मांसपेशियां।ग्रन्थियां, नसें व धमनियां :
शीर्षग्रंथि, सिर व मस्तिष्क की धमनियां।

DDHEERAJ Pndey, [05.05.21 11:51]
संभावित रोग :
अनिद्रा, सिरदर्द, चक्कर आना, मस्तिष्क की गड़बड़ी या बुखार, सिर व चेहरे पर फोड़े- फुन्सी, पायरिया, मिर्गी, आँखों की समस्या, अनिद्रा, तंत्रिका केन्द्रो में कष्ट, मुच्र्छा आना, आग से दुर्घटना, बवासीर, मुहांसे, यौन संबंधी रोग।

DDHEERAJ Pndey, [05.05.21 11:52]
व्यवसाय व व्यापार :
खुद का व्यवसाय, नेतागीरी/नेतृत्व करना, सशस्त्र सेना, खिलाड़ी, व्यापार संगठन का नेता, कुख्यात व अत्यधिक अधिकारों वाले शक्तिशाली लोग, शराब खाना, दांतों का डॉक्टर, न्यायिक कार्य, औजार, मशीनरी/कल- पूर्जे, मिस्त्री, फायर मैन/अग्निशामक दल, उद्योग, कृषि, दवाएं, रासायनिक वस्तुएं, शल्य चिकित्सक, जुआ, बागवानी, अन्वेषक, वास्तुकला/आर्किटेक्चर, धातु संबधी कार्य, खाद व्यापारी, सामरिक सेवाएं/फौज, इंजीनियर, कसाई, सट्टा व लाटरी।

DDHEERAJ Pndey, [05.05.21 11:53]
राशि वाले :
1 - चालाक होते है किन्तु अपनी बात मनवाने के लिए झगड़ा करने में भी नहीं हिचकिचाते।
2-ये सक्रिय, आक्रामक, कठोर, असभ्य होते हैं जो रोगों तक का भी विरोध करते हैं।
3-ये भोजन संयमपूर्वक करते हैं किन्तु मानसिक रूप से साहसी होते हैं।
4-इनकी चाल बहुत तेज होती है, काफी हद तक दौड़ने जैसी।

Tuesday, May 4, 2021

Nadi Class 5 By Shastri Dheeraj Pandey #kundli#कुंडली

 DDHEERAJ Pndey, [03.05.21 11:15]

🌹🌹 *ॐ*🌹🌹
वक्रतुंड महाकाय कोटी सूर्य समप्रभा ।।
निर्विघ्नम कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
परिवार में उपस्थित सभी सदस्यों का स्वागत है।🌹🌹

अब आज की क्लास शुरू करते है

कुंडली वह चक्र है, जिसके द्वारा किसी इष्ट काल में राशिचक्र की स्थिति का ज्ञान होता है। राशिचक्र क्रांतिचक्र से संबद्ध है, जिसकी स्थिति अक्षांशों की भिन्नता के कारण विभिन्न देशों में एक सी नहीं है। अतएव राशिचक्र की स्थिति जानने के लिये स्थानीय समय तथा अपने स्थान में होनेवाले राशियों के उदय की स्थिति (स्वोदय) का ज्ञान आवश्यक है।
DDHEERAJ Pndey, [03.05.21 11:21]
हमारी घड़ियाँ किसी एक निश्चित याम्योत्तर के मध्यम सूर्य के समय को बतलाती है। इससे सारणियों की, जो पंचागों में दी रहती हैं, सहायता से हमें स्थानीय स्पष्टकाल ज्ञात करना होता है। स्थानीय स्पष्टकाल को इष्टकाल कहते हैं। इष्टकाल में जो राशि पूर्व क्षितिज में होती है उसे लग्न कहते हैं। तात्कालिक स्पष्ट सूर्य के ज्ञान से एवं स्थानीय राशियों के उदयकाल के ज्ञान से लग्न जाना जाता है।

लग्न और भाव
पृथ्वी की दैनिक गति के कारण बारह राशियों का चक्र चौबीस घंटों में हमारे क्षितिज का एक चक्कर लगा आता है। इनमें जो राशि क्षितिज में लगी होती है उसे लग्न कहते हैं। यहाँ लग्न और इसके बाद की राशियाँ तथा सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु आदि ग्रह जन्मपत्री के मूल उपकरण हैं। लग्न से आरंभकर इन बारह राशियाँ को द्वाद्वश भाव कहते हैं। इनमें लग्न शरीरस्थानीय हैं। शेष भाव शरीर से संबंधित वस्तुओं के रूप में गृहीत हैं। जैसे लग्न (शरीर), धन, सहज (बंधु), सुख, संतान, रिपु, जाया, मृत्यु, धर्म, आय (लाभ) और व्यय (खर्च) ये 12 भावों के स्वरूप हैं।

DDHEERAJ Pndey, [03.05.21 11:29]
इन भावों की स्थापना इस ढंग से की गई है कि मनुष्य के जीवन की संपूर्ण आवश्यकताएँ इन्हीं में समाविष्ट हो जाती हैं। इनमें प्रथम (लग्न), चतुर्थ (सुख), सप्तम (स्त्री) और दशम् (कर्मा) इन चार भावों को केंद्र मुख्य कहा गया है।
कर्नल अनिल साहू जी स्टूडेंट्, [03.05.21 11:30]
धीरज जी, जब गर्भ धारण होता है और जब देह में आत्मा का प्रवेश होता है, तब चरित्र बनता है या जब बच्चा जन्म लेता है तब, क्योंकि डिलीवरी से पहले अगर माँ फ्लाइट में दूसरे देश में चली जाए तो लग्न और बाकी ग्रह भी वदल जाएंगे।
तो क्या हम अपने लग्न कुंडली को इस तरह कंट्रोल कर नही लेंगे। फिर कर्म का फल कैसे मिलेगा

DDHEERAJ Pndey, [03.05.21 11:30]
वस्तुत: आकाश में इनकी स्थिति ही इस मुख्यता का कारण है। लग्न पूर्व क्षितिज और क्रांति वृत्त का संयोग बिंदु कहा गया है, सप्तम भी पश्चिम क्षितिज और क्रांति वृत्त का संयोग बिंदु ही है। ऐसे ही दक्षिणोत्तर वृत्त और क्रांतिवृत्त का वह संयोग बिंदु जो हमारे क्षितिज से नीचे है चतुर्थ भाव तथा क्षितिज से ऊपर हमारे शिर की ओर (दक्षिणोत्तर वृत्त और क्रांति वृत्त) का संयोग बिंदु दशम भाव कहलाता है।

DDHEERAJ Pndey, [03.05.21 11:38]
इन्हीं केंद्रों के दोनों और जीवनसंबंधी अन्य आवश्यकताओं एवं परिणामों को बतलानेवाले स्थान हैं। लग्न (शरीर) के दाहिनी ओर व्यय है, बाईं ओर धन का घर है। चौथे (मुख) के दाहिनी और बंधु और पराक्रम हैं, बाईं ओर संतान और विद्या हैं। सप्तम स्थान (स्त्री) के दाहिनी ओर शत्रु और व्याधि हैं तो बाईं ओर शत्रु और व्याधि हैं तो बाईं ओर मृत्यु है। दशम (व्यवसाय) के दाहिनी ओर भाग्य और बाईं ओर आय (लाभ) है।

DDHEERAJ Pndey, [03.05.21 11:40]
जन्मपत्री द्वारा प्राणियों के जीवन में घटित होनेवाले परिणामों के तारतम्यों को बतलाने के लिए इन बारह राशियों के स्वामी माने गए सात ग्रहों में परस्पर मैत्री, शत्रुता और तटस्थता की कल्पना की गई है और इन स्वाभाविक संबंधों में भी विशेषता बतलाने के लिए तात्कालिक मैत्री, शत्रुता और तटस्थता की कल्पना द्वारा अधिमित्र, अधिशत्रु आदि कल्पित किए गए है।

DDHEERAJ Pndey, [03.05.21 11:43]
इसी प्रकार ग्रहों की ऊँचीनीची राशियाँ भी उपर्युक्त प्रयोजन के लिए ही कल्पित की गई हैं (क्योंकि फलित के ये उच्च वास्तविक उच्चों से बहुत दूर हैं)। इन कल्पनाओं के अनुसार किसी भाव में स्थित ग्रह यदि अपने गृह में हो तो भावफल उत्तम, मित्र के गृह में मध्यम और शत्रु के गृह में निम्न कोटि का होगा। यदि ऐसे ही ग्रह अपने उच्च में हों तो भावफल उत्तम और नीच में हो तो निकृष्ट होगा। इसके मध्य में अनुपात से फलों का तारतम्य लाना होता है। तात्कालिक मैत्री, शत्रुता, समता आदि से स्वाभाविक मैत्री आदि के द्वारा निर्दिष्ट शुभाशुभ परिणामों में और अधिकता न्यूनता करनी होती है।

DDHEERAJ Pndey, [03.05.21 11:45]
हिंदू और यूनानी दोनों प्रणालियों में भावों की कल्पना एक सी किंतु 6, 11 और 12 भावों में भेद स्पष्ट है। यद्यपि हिंदू प्रणाली में झूठे भाव स शत्रु और रोग दोनों का विचार किया जाता है किंतु उनमें शत्रु भाव ही मुख्य है। यूनानी ज्योतिष में ग्यारहवाँ मित्र भाव और बारहवाँ त्रुभाव है। हिंदू ज्योतिष में 11वाँ आय और बारहवाँ व्यय है।

DDHEERAJ Pndey, [03.05.21 11:47]
जन्मकुंडली में ग्रहों के संबंध में अन्य कल्पनाएँ प्राणिवर्ग के पारस्परिक संबंधों और अन्य संभाव्य परिस्थितियों पर आधारित है जिनके द्वारा प्रस्तुत किए गए फलादेश प्राणियों पर घटित होनेवाली क्रियाओं के अनुरूप ही होते हैं। ग्रहों की स्वाभाविक मैत्री, विरोध और तटस्थता तथा तात्कालिक विद्वेष, सौहार्द्र और समभाव की मान्यताएँ जन्मकुंडली के लिए आधारशिला के रूप में गृहीत हैं।

DDHEERAJ Pndey, [03.05.21 11:50]
इसी प्रकार सूर्य आदि सात ग्रहों को क्रमश: आत्मा, मन, शक्ति, वाणी, ज्ञान, काम, दु:ख, तथा मेष आदि बारह राशियों की क्रम से शिर, मुख, उर (वक्ष) हृदय, उदर, कटि, वस्ति, लिंग, उरु, घुटना, जंघा और चरण आदि की कल्पनाएँ, प्राणियों की मानसिक अवस्था तथा शारीरिक विकृति, चिह्न आदि को बताने के लिए की गई हैं। ग्रहों के श्वेत आदि वर्ण, ब्राह्मण आदि जाति, सौम्य, क्रूर, आदि प्रकृति की मान्यताएँ भी प्राणिवर्ग के रूप, रंग, जाति और मनोवृत्ति के परिचय के लिए ही हैं। चोरी गई वस्तु के परिज्ञान के लिए इनका सफल प्रयोग प्रसिद्ध है।

DDHEERAJ Pndey, [03.05.21 11:56]
अब हम एक एक कर के सभी भाव के बारे में जानने का प्रयास करते है

 प्रथम भाव : इसे लग्न कहते हैं। अन्य कुछ नाम ये भी हैं : हीरा, तनु, केन्द्र, कंटक, चतुष्टय, प्रथम। इस भाव से मुख्यत: जातक का शरीर, मुख, मस्तक, केश, आयु, योग्यता, तेज, आरोग्य का विचार होता है।

 द्वितीय भाव : यह धन भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं, पणफर, द्वितीय। इससे कुटुंब-परिवार, दायीं आंख, वाणी, विद्या, बहुमुल्य सामग्री का संग्रह, सोना-चांदी, चल-सम्पत्ति, नम्रता, भोजन, वाकपटुता आदि पर विचार किया जाता है।

DDHEERAJ Pndey, [03.05.21 11:57]
तृतीय भाव : यह पराक्रम भाव के नाम से जाना जाता है। इसे भातृ भाव भी कहते हैं। अन्य नाम हैं आपोक्लिम, अपचय, तृतीय। इस भाव से भाई-बहन, दायां कान, लघु यात्राएं, साहस, सामर्थ्य अर्थात् पराक्रम, नौकर-चाकर, भाई बहनों से संबंध, पडौसी, लेखन-प्रकाशन आदि पर विचार करते है।

 चतुर्थ भाव : यह सुख भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- केन्द्र, कंटक, चतुष्टय। इस भाव से माता, जन्म समय की परिस्थिति, दत्तक पुत्र, हृदय, छाती, पति-पत्नी की विधि यानी कानूनी मामले, चल सम्पति, गृह-निर्माण, वाहन सुख का विचार करते है।

DDHEERAJ Pndey, [03.05.21 11:59]
पंचम भाव : यह सुत अथवा संतान भाव भी कहलाता है। अन्य नाम है-त्रिकोण, पणफर, पंचम। इस भाव से संतान अर्थात् पुत्र .पुत्रियां, मानसिकता, मंत्र-ज्ञान, विवेक, स्मरण शक्ति, विद्या, प्रतिष्टा आदि का विचार करते हैं।

षष्ट भाव : इसे रिपुभाव कहते हैं। अन्य नाम हैं रोग भाव, आपोक्लिम, उपचय, त्रिक, षष्ट। इस भाव से मुख्यत: शत्रु, रोग, मामा, जय-पराजय, भूत, बंधन, विष प्रयोग, क्रूर कर्म आदि का विचार होता है।

DDHEERAJ Pndey, [03.05.21 12:01]
सप्तम भाव : यह पत्नी भाव अथवा जाया भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं-केन्द्र, कंटक, चतुष्टय, सप्तम। इस भाव से पति अथवा पत्नी, विवाह संबंध, विषय-वासना, आमोद-प्रमोद, व्यभिचार, आंतों, सांझेदारी के व्यापार आदि पर विचार किया जाता है।

अष्टम भाव : इसे मृत्यु भाव भी कहते हैं। अन्य नाम हैं-लय स्थान, पणफर, त्रिक, अष्टम। आठवें भाव से आयु, मृत्यु का कारण, दु:ख-संकट, मानसिक पीड़ा, आर्थिक क्षति, भाग्य हानि, गुप्तांग के रोगों, आकस्मिक धन लाभ आदि का विचार होता है।

DDHEERAJ Pndey, [03.05.21 12:03]
नवम भाव : इसे भाग्य भाव कहलाता हैं। अन्य नाम हैं त्रिकोण और नवम। भाग्य, धर्म पर आस्था, गुरू, पिता, पूर्व जन्म के पुण्य-पाप, शुद्धाचरण, यश, ऐश्वर्य, वैराग्य आदि विषयों पर विचार इसी भाव के अन्तर्गत होता है।

दशम भाव : यह कर्म भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- केन्द्र, कंटक, चतुषृय-उपचय, राज्य, दशम। दशम भाव से कर्म, नौकरी, व्यापार-व्यवसाय, आजीविका, यश, सम्मान, राज-सम्मान, राजनीतिक विषय, पदाधिकार, पितृ धन, दीर्ध यात्राएं, सुख आदि पर विचार किया जाता है।

DDHEERAJ Pndey, [03.05.21 12:04]
एकादश भाव : यह भाव आय भाव भी कहलाता है। अन्य नाम हैं- पणफर, उपचय, लब्धि, एकादश। इस भा से प्रत्येक प्रकार के लाभ, मित्र, पुत्र वधू, पूर्व संपन्न कर्मों से भाग्योदय, सिद्धि, आशा, माता की मृत्यु आदि का विचार होता है।

द्वादश भाव : यह व्यय भाव कहलाता है। अन्य नाम हैं- अंतिम, आपोक्लिम, एवं द्वादश। इस भाव से धन व्यय, बायीं आंख, शैया सुख, मानसिक क्लेश, दैवी आपत्तियां, दुर्घटना, मृत्यु के उपरान्त की स्थिति, पत्नी के रोग, माता का भाग्य, राजकीय संकट, राजकीय दंड, आत्म-हत्या, एवं मोक्ष आदि का विचार किया जाता है।

ग्रह आकाशीय पिंड हैं..........

 Learn Naadi Astrology S Dhiraaj Pandey 9935176170 ग्रह आकाशीय पिंड हैं जो एक तारे के चारों ओर परिक्रमा करते हैं और स्वयं का प्रकाश उत्पन्न ...